मत तोड़ो मत तोड़ो हिन्दू मुस्लिम को जोड़ो~ साहिल वर्मा
8:51:00 PM
मत तोड़ो मत तोड़ो हिन्दू मुस्लिम को जोड़ो
भाई भाई को जोड़ो मिलकर भारत जय बोलो
जिसने हिंसा बोई है अब ढूँढ़ो ऐसे गद्दारों को
लहू बहाया मासूमों का फेंको इन तलवारों को
बंगाल विभाजन देखा है पाकिस्तान भी देखा है
देश की खातिर वीरो को कुर्वानी देते देखा है
राजनीति के चौराहे पर देशभक्ति की मूरत है
नेताओ के भीतर देखो आतंकवाद सी सूरत है
हिरोसिमा सब भूल गये फिर हथियारों की दौड़ लगी
हाइड्रोजन परमाणु विनासक आज बमों होड़ लगी
शीत युद्ध के चक्रवात में भारत को मत उलझाओ
अरुणाचल लद्धाख सियाचिनकामसलासुलझाओ
पहलेअंग्रेजों से त्रस्त थे अब अपनों से ही त्रस्त हैं
रियासत के जो राजा थे वो सूबे के अब मुखिया हैं
अपनी आँखों में आँसू थे अपनी आँखों में आँसू हैं
राजगुरु सुखदेव भगत ख़ुशी से शहीद हो जाते थे
आज भी मेजर, फौजी सरहद पर कुर्बानी दे देते हैं
देशद्रोह में जेल भेज दो जिनको न तिरंगा भाता हो
नाश करो तत्वों को जिनसे संप्रभुता को खतरा हो
लाल, हरे,पीले झंडो को अपने घर के भीतर रख्खो
द्वितीय स्वतंत्रा है लानी छत पर एक तिरंगा रख्खो
तुम्ही चाणक्य, रामानुजन, सुभाष भी तुम ही हो
अपने भीतर के अद्भुत मानव को पहचानो अब
पुकारती, कराहती साथ फिर से मांगती
मातृभूमि आस से हम सबको निहारती
मत तोड़ो मत तोड़ो हिन्दू मुस्लिम को जोड़ो
भाई भाई को जोड़ो मिलकर भारत जय बोलो।।
भाई भाई को जोड़ो मिलकर भारत जय बोलो
जिसने हिंसा बोई है अब ढूँढ़ो ऐसे गद्दारों को
लहू बहाया मासूमों का फेंको इन तलवारों को
बंगाल विभाजन देखा है पाकिस्तान भी देखा है
देश की खातिर वीरो को कुर्वानी देते देखा है
राजनीति के चौराहे पर देशभक्ति की मूरत है
नेताओ के भीतर देखो आतंकवाद सी सूरत है
हिरोसिमा सब भूल गये फिर हथियारों की दौड़ लगी
हाइड्रोजन परमाणु विनासक आज बमों होड़ लगी
शीत युद्ध के चक्रवात में भारत को मत उलझाओ
अरुणाचल लद्धाख सियाचिनकामसलासुलझाओ
पहलेअंग्रेजों से त्रस्त थे अब अपनों से ही त्रस्त हैं
रियासत के जो राजा थे वो सूबे के अब मुखिया हैं
अपनी आँखों में आँसू थे अपनी आँखों में आँसू हैं
राजगुरु सुखदेव भगत ख़ुशी से शहीद हो जाते थे
आज भी मेजर, फौजी सरहद पर कुर्बानी दे देते हैं
देशद्रोह में जेल भेज दो जिनको न तिरंगा भाता हो
नाश करो तत्वों को जिनसे संप्रभुता को खतरा हो
लाल, हरे,पीले झंडो को अपने घर के भीतर रख्खो
द्वितीय स्वतंत्रा है लानी छत पर एक तिरंगा रख्खो
तुम्ही चाणक्य, रामानुजन, सुभाष भी तुम ही हो
अपने भीतर के अद्भुत मानव को पहचानो अब
पुकारती, कराहती साथ फिर से मांगती
मातृभूमि आस से हम सबको निहारती
मत तोड़ो मत तोड़ो हिन्दू मुस्लिम को जोड़ो
भाई भाई को जोड़ो मिलकर भारत जय बोलो।।
~ साहिल वर्मा
1 comments
देशप्रेम से ओत -प्रोत कविता
ReplyDeleteदेश को इक सूत्र में परोती कविता
बहुत खूब..... जिंदा बाद