Holi Special Poems - कविता सिंह
6:52:00 AM
आओ मिलकर खेलें होली
निकले फिर मस्तों की टोली
जात पात के भेद भुला के
देश प्रेम से भर लें झोली
आओ मिलकर..........
उन रीती आँखों के सपने
खोए हैं जिनके सब अपने
आओ दुआ करें सब रब से
बिछड़े न कोई अब अपने
ऐसे हिलमिल खेलें होली
आओ मिलकर ...........
हँसी ठिठोली फिर से सूझे
इक दूजे को मन से बूझे
रंग अबीर गुलाल उड़े फिर
फिर मिल कर रंगों से जूझें
प्रेम की फिर हम बोलें बोली
आओ मिलकर..........

निकले फिर मस्तों की टोली
जात पात के भेद भुला के
देश प्रेम से भर लें झोली
आओ मिलकर..........
उन रीती आँखों के सपने
खोए हैं जिनके सब अपने
आओ दुआ करें सब रब से
बिछड़े न कोई अब अपने
ऐसे हिलमिल खेलें होली
आओ मिलकर ...........
हँसी ठिठोली फिर से सूझे
इक दूजे को मन से बूझे
रंग अबीर गुलाल उड़े फिर
फिर मिल कर रंगों से जूझें
प्रेम की फिर हम बोलें बोली
आओ मिलकर..........
कविता सिंह
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