गजल- कविता सिंह "वफ़ा"

9:01:00 PM

गजल
कविता सिंह

तुम्हारे प्यार की तासीर में बेचैन मेरा दिल !
तुम्हे पाने की हर तदबीर में बेचैन मेरा दिल !!
अधूरी ख़्वाहिशें मेरी अधूरे ख़्वाब हैं मेरे !
अधूरे ख़्वाब की तामीर में बेचैन मेरा दिल !!
अकेला सा खड़ा बरगद झुकी फैली हुई शाखें 
अकेलेपन की इस तक़दीर में बेचैन मेरा दिल !
बड़े बेचैन हैं अब लोग टूटी अब शनासाई !
इसी बिखरी हुई तस्वीर में बेचैन मेरा दिल !!
कहाँ साझे के वे चूल्‍हे कहाँ पनघट की वो रौनक !
"वफ़ा" कब दब गई दीवार में बेचैन मेरा दिल!!

गज़ल

हर तरफ चली है बात अपनी शनासाई की,
साथ ही बात है अब तेरी बेवफाई की !!

अब भी वही रात है चांदनी भी फैली है,
पर सियाही कितनी है शब तेरी जुदाई की ।।

तस्कीन-ए-दिल था फिर से आमद का तेरे,
कैसे कहूँ भूल गए बात थी रुसवाई की !!

रूदाद-ए-ग़म कह न सकी ख़त्म आशिकी का,
बात दूर तक गई है तेरी आशनाई की !!

तुझमें "वफ़ा" थी नहीं कोई कहाँ माना ये,
लोग जानते थे बात तेरी मसीहाई की ।।

कविता सिंह "वफ़ा"
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