गांवों में अब नहीं सुनाई देता जै जीबे से खेले फाग..

12:40:00 AM

The Chandra Times : www.chandratimes.in
Holi Special:
सहरसा: Bargaon -  हाथ में हारमोनियम, झाल एवं एक-दो पुरूष नर्तकी के साथ होली में जब कीर्तन मंडली गांव में एक दूसरे के दरवा•ो पर गाते जाते थे तो माहौल खुशनूमा हो जाता था। एक-दूसरे को रंग लगाते फाग गाते हुए टोली में झाल-मंजीरे के साथ जाते थे परंतु अब यह परंपरा लगभग समाप्त हो गयी है।
बूढ़े-बुजुर्ग अब आधुनिकीकरण को संस्कृति पर आघात कहते हुए कोसते हैं। कहते हैं लोग पुरानी संस्कृति भूलते जा रहे हैं। अब फाग के बदले डीजे के धुनों पर युवा वर्ग थिरकते हैं। होली आने से दस दिन पहले जोगीरा सा-रा-रा की आवाज पूरे गांव में सुनाई देती थी। बुजुर्ग कहते हैं कि पहले गांव की होली मंडली सामाजिक सौहार्द का बड़ा जरिया था।
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फाग की विलुप्ति के कारण
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रोजगार की तलाश में लोग पलायन करने लगे तो मनोरंजन के साधन भी अब इलेक्ट्रॉनिक रूपों में भरमार हो गए हैं। डीजे की ओर झुकाव बढ़ा है। जबकि सामाजिक सुरक्षा की भी समस्या है। जो गांव में रह रहे हैं उनके पास भी अब समय की कमी है। पहले लोग फाग गाने वाले मंडली के लोगों को प्रोत्साहित करते थे, लेकिन अब पहले वाली बात ही नहीं रही। जगह-जगह लोग आपसी वैमनस्यता के कारण इससे परहेज करने लगे हैं।
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आमलोगों की सुनें
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वर्षों से कुछ हद तक इस परम्परा को कायम रखने वाले कहते है कि डीजे के प्रचलन से गीतों में अश्लीलता बढ़ गई है। होली के मायने ही बदल गए हैं। जहां पहले लोग ढोलक, हारमोनियम, झाल, कड़ताल आदि लेकर समाज में प्रत्येक दरवाजे पर फाग गाते थे, परंतु अब तो नै ओ नगरी नै ओ ठाम, अब भले लोग नशे के बढ़े प्रचलन से घरों से निकलना तक पसंद नहीं करते है। पॉप म्यूजिक ने नई पीढ़ी को अपनी सभ्यता और संस्कृति भूलने पर मजबूर कर दिया है। वर्तमान पीढ़ी पश्चिमी सभ्यता के नकल में अपने को भूल रही है। पहले गाए जाते थे जब आए कन्हाई पनघट पे, पनघटिया ले यमुना तट पे। अब तो नए युवक-युवतियां हमें गाते देख अपना डीजे बजाना शुरू कर देते हैं।

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