शारिरिक बल के बल पर पुरुष करता है हिंसा....Sunita Jain
5:01:00 AM
शारिरिक बल के बल पर पुरुष करता है हिंसा......
औरत के साथ पतियों द्वारा अभद्र व्यवहार औऱ शारिरिक हिंसा की वारदात
कोई नया कुछ नहीं। यदि साफ शब्दों में कहा जाए तो ये सदियों से चली आ रही परम्परा है।जो पुरुष प्रधान समाज में बेहद शर्मनाक कही जानी चाहिए।
देवताओं की भूमि पर एक ओर एक ओर नारी पूज्यनीय है, वहीं दूसरी ओर घरेलू हिंसा....!घर-घर ऐसी हिंसा समाज में श्राप है।
कल की ख़बर से समूचा महिला वर्ग सकते में है।मशहूर अभिनेत्री दीप शिखा को उसके पति ने पैसे न मिल पाने के कारण बेतहाशा पीटा....।। हमारे देश के हर गाँव, हर गली हर घर में ऐसी दुर्घटनाऐं होना संभावित हो सकता है। चाहें वे शिक्षित परिवार हों अशिक्षित।कुछ अशिक्षावश, कुछ लिहाजवश सामने भले ही न आऐं।
पुरुषों की तानाशाही ही
छोटे-मोटे मुद्दों को जन्म देकर हिंसा का जामा पहना देते हैं।कोई बड़े मुद्दे के तहत भी औरत पर हाथ उठाना कहाँ का न्याय है?यै कुकृत्य आपत्तिजनक औऱ असंतोष जनक ही है।
कई कारणों में से अहं कारण है..... पुरुषों का अधिक बलशाली होना....।
औऱ जब कोई मानसिक रोगी ही हो तो उसके लिए क्या कारण,याअकारण!!!
आज युग बदला है, महिला शिक्षित भी है,जागरूक भी....। कानून में भी अमेलचूल परिवर्तन आया था।फिर भी इस तरह की घटनाओं का घटित होना
मन द्रवित कर देता है।
आज हर युवक को शिक्षित व समान पद पर कार्यरत सहचरी की ज़रूरत होती है फिर अधिकार समान क्यों नहीं!!! कभी-कभी अधिक योग्य पत्नी भी पति को अवसाद में ले जाकर कुंठित बना देती है।वे असुरक्षित महसूस कर अपराध कर बैठते हैं।
जब क़ानून महिला के साथ है तो किसी भी तरह की अनुकूल परिस्थितियाँ झेलने भी सामाजिक अपराध है।न ही ऐसी स्थितियां स्वीकारें न ही स्वीकार करने दें.....।संदेश है आवाज़ उठाएं.......।
औरत के साथ पतियों द्वारा अभद्र व्यवहार औऱ शारिरिक हिंसा की वारदात
कोई नया कुछ नहीं। यदि साफ शब्दों में कहा जाए तो ये सदियों से चली आ रही परम्परा है।जो पुरुष प्रधान समाज में बेहद शर्मनाक कही जानी चाहिए।
देवताओं की भूमि पर एक ओर एक ओर नारी पूज्यनीय है, वहीं दूसरी ओर घरेलू हिंसा....!घर-घर ऐसी हिंसा समाज में श्राप है।
कल की ख़बर से समूचा महिला वर्ग सकते में है।मशहूर अभिनेत्री दीप शिखा को उसके पति ने पैसे न मिल पाने के कारण बेतहाशा पीटा....।। हमारे देश के हर गाँव, हर गली हर घर में ऐसी दुर्घटनाऐं होना संभावित हो सकता है। चाहें वे शिक्षित परिवार हों अशिक्षित।कुछ अशिक्षावश, कुछ लिहाजवश सामने भले ही न आऐं।
पुरुषों की तानाशाही ही
छोटे-मोटे मुद्दों को जन्म देकर हिंसा का जामा पहना देते हैं।कोई बड़े मुद्दे के तहत भी औरत पर हाथ उठाना कहाँ का न्याय है?यै कुकृत्य आपत्तिजनक औऱ असंतोष जनक ही है।
कई कारणों में से अहं कारण है..... पुरुषों का अधिक बलशाली होना....।
औऱ जब कोई मानसिक रोगी ही हो तो उसके लिए क्या कारण,याअकारण!!!
आज युग बदला है, महिला शिक्षित भी है,जागरूक भी....। कानून में भी अमेलचूल परिवर्तन आया था।फिर भी इस तरह की घटनाओं का घटित होना
मन द्रवित कर देता है।
आज हर युवक को शिक्षित व समान पद पर कार्यरत सहचरी की ज़रूरत होती है फिर अधिकार समान क्यों नहीं!!! कभी-कभी अधिक योग्य पत्नी भी पति को अवसाद में ले जाकर कुंठित बना देती है।वे असुरक्षित महसूस कर अपराध कर बैठते हैं।
जब क़ानून महिला के साथ है तो किसी भी तरह की अनुकूल परिस्थितियाँ झेलने भी सामाजिक अपराध है।न ही ऐसी स्थितियां स्वीकारें न ही स्वीकार करने दें.....।संदेश है आवाज़ उठाएं.......।
सुनीता..
Sub _Editor
The Chandra Times
www.chandratimes.in
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