माँ ने किया पराया था जब, सीखें पल्ले में बाँध के दीं
11:11:00 AMहा!पति पुरुष संसार में नारी,
औरत ही बन पाई थी
नीड़ छोड़ कर आई थी वो,
कोंपल सी उग पाई है........
आधा जीवन उस घर सींचा,
आधा... दीप जला अघाई थी
ममता की निर्झरणी बन,
तपस्या खूब निभाई थी...
ताने पर थे ख्वाब अधूरे,
पूरा करने आई थी.............
माँ ने किया पराया था जब,
सीखें पल्ले में बाँध के दीं
उद्देश्य ताक पर टांग दिए
सीमाओं से बंधी रही.......
इक रिश्ते के नाते थे वो,
उन सबको आकार दिया
वो घर भी अपना नहीं रहा,
ये घर भी अपना नहीं रहा.......
खून से सींचा संतानों को,
रेशा-रेशा प्राण पड़ा.......
प्रसव पीड़ा से व्याकुल हो
अंश को उसने जन्म दिया
नाम पुरुष का जोड़ दिया,
औऱ खून उसी का कहलाया......
सबकी चाह धरी हाथों पर
खुद की चाह की फिक्र नहीं
उनके घर को अपने मन के
मंदिर सा वो सजा रही.......
हा! समाज की कैसी व्यवस्था
कैसी परम्परा बनी रही !!!
पति छोड़े या वो छोड़े,
परित्यक्ता ही कहलाई गई..........
सुनीता..
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