Sunta jain poems-जब से तुझे देखा है |

10:02:00 AM


कशमकश में जी रहा हूँ
जब से तुझे देखा है......
तेरा जिंदादिली से जीना,
 बेफ़िक्री से बातें करना......
हर बात पर हँसना,
 सपनों का ज़िक्र करना,
  बेपरवाह सी रहना........
  हैरान हो जाता हूँ।
  इतनी बेपरवाह.......
  कैसे हो जाती हो तुम.
  मुझे परवाह रहती है,
 हरदम तुम्हारी........
  कैसे पूरे कर पाऊँगा,
  तुम्हारे वे असीम सपने.....
   वो बेफ़िक्र हँसी मैं,
   कैसे कायम रखुंगा.........
   तुम्हारे हर सपनों के लिए,
      मेरा सपना टूट भी जाए,
     सह लुंगा तेरी खा़तिर.....
   चुप रहुंगा तुम्हारे,
  हर सपने की खा़तिर.........

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