घूँघट-Sahil

4:16:00 PM

घूँघट
आसमान संग उड़ती जाती
सूरज से वह आँख मिलाती
रातों को जुगनू बनकर
रंग बिरंगे ख्वाब सजाती
बड़ी बड़ी बातें करती
चौका बर्तन भी मन से करती
बहस में हमेशा आगे रहती
भैया बकील शाहिबा बुलाते
बाबा अफसर बिटिया कहते
जिसने उसमे जिसको देखा
उसी नाम से उसे पुकाराते
छोटी बिटिया फिर हुई सयानी
फिर इक वक़्त ऐसा भी आया
मंडप सजा, ढ़ोल बजा
बेटी पराए घर को बिदा हुई
अब खुद को उसने
नए जहां में पाया
जहां कई सीमाएं थी
नज़र झुका के बात करना है
धीमी चाल से ही चलना है
मेहमान के आने पर  
सारे गहने सारे गहने पहनना है
बाहर किसी के संग ही जाना है
दूसरों की पसंद को
अपनी पसंद बनाना है
और उसके अपने सपने
घूँघट में कैद होकर रह गए ||
-साहिल वर्मा

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