चने के झाड़ की व्यथा- आभा गुप्ता

6:51:00 AM

चने के झाड़ की व्यथा

एक था चने का झाड़
व्यथित और उदास
पास था उसके एक
गुलाब का झाड़
चने के झाड़ ने
सुनाई उसे अपनी व्यथा
कह डाली पूरी कथा
“क्या बताऊँ भाई
जब इंसान इंसान को भरमाता है
वो सीधा मेरे ऊपर चढ़ जाता है
ये मेरा नाज़ुक बदन
नहीं सह पाता वज़न
गिरता है वो धड़ाम
और कोसता मुझे तमाम
नहीं कोसता उसे
जिसने बहकाया
मेरे ऊपर चढ़ाया
नहीं मानता खुद को बेवकूफ
नहीं सीखता कोई सबक़
और भैया कुछ तो बड़े सयाने
कोई माने न माने
गिरते ही नहीँ ,लदे रहते हैं
इठलाते हैं ,इतराते हैं
औरों को लुभाते हैं
हो जाता मेरा बुरा हाल
अरे तुम तो हो खुशहाल
काँटे तुम्हारे पहरेदार
फूल हैं तुम्हारे यार"।
सुनकर चने के झाड़ की बात
गुलाब ने ली एक लंबी साँस
"भैया....ये इंसान है
बुद्धिमान है ,चालाक है
जहाँ इसे स्वार्थ दिखता है
वहीं ये लपकता है
भला मुझे भी कहाँ छोड़ता है
काँटे छोड़ फूल ही तोड़ता है
चुभ जाता जो कोई काँटा
तो मुझे ही कोसता है
मैं मौन सब सहता हूँ
मेरे भाई.......
ये एक-दूसरे को भी नहीं बख़्शता
इंसान ही इंसान को छलता
हम तो वनस्पति हैं
परोपकार ही हमारी नियति है"।

 ........आभा गुप्ता

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