मैं सरिता सा निर्मल पाथ- Sunita Jain
4:54:00 AM
नहीं सागर सी मुझमें बात,
मैं सरिता का निर्मल पाथ.......
अविरल गाती हूँ प्रेम राग
अश्रु बन बहती प्रति रात........
*संगम की न चाह मुझे
न मिल पाने की डाह मुझे
जो मुझसे मिलते वही तात
मैं तो बस बहती दिन ओ रात
*कोई दीपक आकार साँझ जले
मैं विनय से अपना हाथ धरूं
ताप सहूँ ह्रदय -तल पर....
जल-जल कर भी ज्योति करुँ
मैं सपने तेरे पूरण कर,
निःस्वार्थ भाव से बहा करुँ.....
मैं सरिता सा निर्मल पाथ,
नहीं सागर सी कोई बात.........
सुनीता..
मैं सरिता का निर्मल पाथ.......
अविरल गाती हूँ प्रेम राग
अश्रु बन बहती प्रति रात........
*संगम की न चाह मुझे
न मिल पाने की डाह मुझे
जो मुझसे मिलते वही तात
मैं तो बस बहती दिन ओ रात
*कोई दीपक आकार साँझ जले
मैं विनय से अपना हाथ धरूं
ताप सहूँ ह्रदय -तल पर....
जल-जल कर भी ज्योति करुँ
मैं सपने तेरे पूरण कर,
निःस्वार्थ भाव से बहा करुँ.....
मैं सरिता सा निर्मल पाथ,
नहीं सागर सी कोई बात.........
सुनीता..
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