वो ! कश्ती मेरे अरमानों की ... उसमे.. सफ़र को जी चहता है ॥-Reena

11:17:00 AM

 वो ! कश्ती  मेरे  अरमानों  की ...   
उसमे.. सफ़र  को  जी चहता  है  ॥

लहर बनके आये ,  इस क़दर ...,के 
किनारे  बैठने  को , जी चाहता  है ॥

 शब्दो  के समुन्द्र मे ,  इक  खुमा सा ...  ।
 क्यू ?  हर  वक़्त  डूब जाने को,  जी चाहता है ॥

 जाम खारा , मगर  क्यू  पीने को  जी  चाहता ।
ये खुमा  कैसा , हर घड़ी उसमें , जीनेको जी  चाहता ॥

-©Reena Singh Gahlot

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