शालिनी 'कशिश ' ( Todays Voice)
4:06:00 AM
सुनो..
मेरे भाई , पिता , पति , पुत्र ..
रिश्ते तो बहुत सगे हैं तुमसे..
पर हर रिश्ते में तुम निरे पुरुष ही निकले ,
तुम्हारे शूल से चुभते निष्ठुर प्रश्नों के बीच..
लहुलुहान होती मेरी संवेदनाये..
छत-विछत होता मेरा अन्तर्मन..
समझना चाह रहा है इस वास्तविकता को.
क्या सिर्फ़ तुम्हारी सोच से ही मुझे
सोचना होगा ??
किस रास्ते कितना चलना है..
ये सब हमेशा तुम्हीं तय करोगे..
मेरी नैतिकतायें ,मेरी लछ्मण रेखा..
सब निश्चित करने का अधिकार ..
सिर्फ़ तुम्हें है !!!
हे पुरुष !!
हर काल , हर देश में , हर रिश्ते में ..
तुम महज़ एक पुरुष ही हो..
बिना किसी गलती के भी औरत को ..
अहिल्या बनाने को आतुर..
ईश्वर की बनायी प्राणमयी कृति को ..
पत्थर में बदलने को तत्पर... ।
मेरे भाई , पिता , पति , पुत्र ..
रिश्ते तो बहुत सगे हैं तुमसे..
पर हर रिश्ते में तुम निरे पुरुष ही निकले ,
तुम्हारे शूल से चुभते निष्ठुर प्रश्नों के बीच..
लहुलुहान होती मेरी संवेदनाये..
छत-विछत होता मेरा अन्तर्मन..
समझना चाह रहा है इस वास्तविकता को.
क्या सिर्फ़ तुम्हारी सोच से ही मुझे
सोचना होगा ??
किस रास्ते कितना चलना है..
ये सब हमेशा तुम्हीं तय करोगे..
मेरी नैतिकतायें ,मेरी लछ्मण रेखा..
सब निश्चित करने का अधिकार ..
सिर्फ़ तुम्हें है !!!
हे पुरुष !!
हर काल , हर देश में , हर रिश्ते में ..
तुम महज़ एक पुरुष ही हो..
बिना किसी गलती के भी औरत को ..
अहिल्या बनाने को आतुर..
ईश्वर की बनायी प्राणमयी कृति को ..
पत्थर में बदलने को तत्पर... ।
शालिनी 'कशिश '
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