सुलझी थी वो ! मगर किसी ने समझा न था- Rachna
7:02:00 AMखुबसूरत रचना का , गुनाह ही क्या था ?
सुलझी थी वो ! मगर किसी ने समझा न था ॥
पढ़ा तो , मुखड़ा ... हर मिशरा उसका ।
मगर दिल किसी ने शायद समझा ही न था ॥
नादान थी मगर जिंदगी वो ! समझा रही रचना ।
लिख के आँसू अपने , दुनियां को कुछ सीखा रही ॥
अपना दर्द कहती ... लिख , वो ! रचना ।
मगर दर्द में उतर के उसे किसी ने , समझा ही न था ॥
यूँ तो जिन्दगी की सुलझी ... किताब थी , वो ।
मगर , सफे पलट के , किसी ने देखा ही न था ॥
शायद , आत्मा से लिखती थी , वो ! रचना ।
मगर उसकी आत्मा को , किसी ने पढ़ा ही न था ॥॥
✍ Writer-Rachna
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