वडनगर से..Evening Poems

5:03:00 AM

वडनगर से..

 वडनगर से विशवपटल तक चलता,
चलता ,रुकता,थमता -मै हूँ आज,,

गगन चुम्भी शिखरों को पीछे छोड़,
वक़्त बदलता रहता-मै हूँ आज,,

न डरता ना डराता ,
लेकिन फिर भी रोज़ हूँ लड़ता जाता।
दुनिया ये जो,कड़वी होती जाती,
मेरी सच्चाई को ,हर सवेरे हे दबाती

 पथ पर चलता,काँटों में पलता;
रोता जाता,दौड़ लगाता।
मै चलता हूँ -फिर उठने को,
लेकिन उठ न पाता हूँ -मै आज।।

चलता, रुकता,थमता -मै हूँ आज,
वक़्त बदलता रहता -मै हूँ आज।

आंधी आते ,तूफान लाते,
गरजती बिजली से डर छुपता हूँ-मै आज।
बदलते मौसम मे बारिश बन सींचता फसलों को,
फसलों को सींचता रहता हूँ मै आज

 बिकता रहता है ये बाज़ार,
मै खड़ा पग पर रहता।
झोल हे ये झमेलों के,
कुछ मुश्तण्डि खेलो के,

लगता -नही रुकेगा ,कभी ये एक बार,
वडनगर से विश्वपटल तक चलता,
चलता,रुकता,थमता मै हूँ आज||


साँसे आधी हो गई,
हो गई है आधी ये जान।

मै रोता जाता कांटो में पल,
पल पल के रिश्ते निभाता।।

गगन चुम्भी शिखरो को पीछे छोड,
वक़्त बदलता रहता मै हूँ आज।
न लड़ता -न लड़ने देता ,
लेकिन घाव सीने पर हूँ रोज़ पाता।।

वडनगर से विश्वपटल तक चलता,
चलता,रुकता,थमता मै हूँ आज।
लेखक:-
आशीष रिछारिया

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