Dil ki bat- Sunita Jain
1:22:00 AM
बहुत छोटी थी उस वक्त, जब ख्वाब देखा करती थी बादलों मे उड़ने के......।
अन्य बच्चों की तरह न तो गुड़ियों से खेलती थी, न ही शैतानियाँ करती थी...
एक साँवली, शर्मीली सी लड़कीबस पढ़ाई की चाह रखती थी। ज्यों-ज्यों वो बड़ी होने लगी ,उसके सपने उससे भी बड़े।बमुश्किल शर्तों पर ग्रेजुएशन किया
आगे सख्त मनाही।छिप कर बी.एड का फार्म भरा, जब एडमिशन हो गया तो सौ सवाल। माँ के सहयोग से कर पाई।सरकारी नौकरी में चयन हुआ, मन नहीं लगा। लगातार सपने कचौटते रहे।
खुशकिस्मति लिखते-लिखते एक अखबार में सह सम्पादक के लिए काम मिल गया.... मेरा मनपसंद.... सपनों को मानो पंख लग गये। फिर तो आकाशवाणी में, देश की हर पत्र-पत्रिकाओं में छपने लगी। कलाऐं चढ़ाव पर थीं। हर रोज एक स्वीकृति मिलती,
पापा भी आनन्दित थे......। फिर एक रोज सपनों पर कुठाराघात, शादी होने के बाद नाम बदल गया.... पहचान बदली,
आवश्यकताएं बदलीं, सारी मेहनत पर पानी फिर गया.....।बच्चों को काबिल बनाने की भरसक कौशिश। आज खुश हूँ, बच्चे क़ाबिल बन गये। अपने टूटे ख्वाब उनमें देखकर खुश हो लेती थी।
अपना खालीपन उनसे भरती थी। तभी एक दिन तीनों बच्चों ने का़ग़ज़ , कलम पकड़ा दिया। फेसबुक पर एकाउंट बना दिया, कहा लिखो...... यहाँ पर कोई भी लिख सकता है। मैं मूक सी सकते में थी, इतने वर्षों बाद....... प्यार से कलम को देखा....... औऱ इंक पसरने लगी पन्नों पर ,मेरे ख्वाबों के टूटे पर पुनः जीवित हो उठे, मुझे मेरा आशियाना मिल गया था। मेरी खोई पहचान मुझे मिल गई थी, अब मैं उड़ रही हूँ ऊंचे...... बहुत ऊंचे आसमान की ओर.....। अब उड़ती रहुंगी अपनी श्वासें थमने तक।
अन्य बच्चों की तरह न तो गुड़ियों से खेलती थी, न ही शैतानियाँ करती थी...
एक साँवली, शर्मीली सी लड़कीबस पढ़ाई की चाह रखती थी। ज्यों-ज्यों वो बड़ी होने लगी ,उसके सपने उससे भी बड़े।बमुश्किल शर्तों पर ग्रेजुएशन किया
आगे सख्त मनाही।छिप कर बी.एड का फार्म भरा, जब एडमिशन हो गया तो सौ सवाल। माँ के सहयोग से कर पाई।सरकारी नौकरी में चयन हुआ, मन नहीं लगा। लगातार सपने कचौटते रहे।
खुशकिस्मति लिखते-लिखते एक अखबार में सह सम्पादक के लिए काम मिल गया.... मेरा मनपसंद.... सपनों को मानो पंख लग गये। फिर तो आकाशवाणी में, देश की हर पत्र-पत्रिकाओं में छपने लगी। कलाऐं चढ़ाव पर थीं। हर रोज एक स्वीकृति मिलती,
पापा भी आनन्दित थे......। फिर एक रोज सपनों पर कुठाराघात, शादी होने के बाद नाम बदल गया.... पहचान बदली,
आवश्यकताएं बदलीं, सारी मेहनत पर पानी फिर गया.....।बच्चों को काबिल बनाने की भरसक कौशिश। आज खुश हूँ, बच्चे क़ाबिल बन गये। अपने टूटे ख्वाब उनमें देखकर खुश हो लेती थी।
अपना खालीपन उनसे भरती थी। तभी एक दिन तीनों बच्चों ने का़ग़ज़ , कलम पकड़ा दिया। फेसबुक पर एकाउंट बना दिया, कहा लिखो...... यहाँ पर कोई भी लिख सकता है। मैं मूक सी सकते में थी, इतने वर्षों बाद....... प्यार से कलम को देखा....... औऱ इंक पसरने लगी पन्नों पर ,मेरे ख्वाबों के टूटे पर पुनः जीवित हो उठे, मुझे मेरा आशियाना मिल गया था। मेरी खोई पहचान मुझे मिल गई थी, अब मैं उड़ रही हूँ ऊंचे...... बहुत ऊंचे आसमान की ओर.....। अब उड़ती रहुंगी अपनी श्वासें थमने तक।
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