काश!!!मैं पूजन कर पाऊँ.- सुनीता

3:16:00 AM

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                      सुनीता..(Editor)
निशा में ख़्वाब सहर के देखूं
नित नव मंगल गा पाऊँ
स्वच्छ भाव का आशय रखकर
 प्रकृति का श्रँगार निरख पाऊँ

पारस पर चंदन लीप-पोत कर
 संतुष्टि कैसे कर पाऊँ
  घर-घर माथे तिलक सजा कर
   मन में ख़दा बसा पाऊँ

 सूनी आँखें तोड़ती पत्थर
    तनिक हँसी मैं दे पाऊँ
    आश्रम की बदहाल ज़िंदगी
   कभी तो गिनती कर पाऊँ

अशक्त वृद्धौं का एकाकी हर दिन
 कुछ अपने पल दे पाऊँ
  उनके बिसरे अनुभवी अधरों को
  झोली में भरकर ले आऊँ

सुखी संसार में कितनी विपदा
 ज़रा-ज़रा सी बाँट सकुँ
 जीवन के सच को पहचानूं
 काश!!!मैं पूजन कर पाऊँ
 हाँ तब ही मैं पूजन कर पाऊँ....
                       Sunita jain..
                       .

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