रिस्तो की डोर यूँ-गिरिजा नन्द मिश्र

12:12:00 AM

छवि प्रकृति अनुपम




 रिस्तो की डोर यूँ

बाँध रखना स्नेहिल तार से।
जब भी गम सताये
मुस्कुरा लेना प्यार से।
देख कर प्रकृति अपनी
जो भी मन भाये नाम देना।
अपने हर सफलता पर
एक एक छोटा इनाम देना।
कदम न डगमगाए
वैसे ही संभाले रहना।
जैसे बचपन में तू ने
ऊँगली पकड़ सम्भाला।।
अपने ममता स्नेह प्रीत भर
लाड़ प्यार से पाला।
बेटी हूँ तुम्हारी
बहन हूँ तुम्हारी।
वस स्नेह भर दे।
नयन नीर न आने दे।
सम्बल भर दे।।
मुस्कान सुमन
कुसुम बन मुस्काऊँ।
तेरी बगिया की चिड़ी
कलरव सुर गाउँ।
उडू  उन्मुक्त गगन में
सरिता धार बन वह जाऊँ।
वो अवनि अम्बर दे मुझको
मुकुलित जीवन पाऊँ।


किसी ने नाता पूछा ।
देखा नहीं आज तक।
रचना जोड़ा नाता
टिका है आज तक।
भरा है स्नेह ममता
लड़ी है प्रीत की न्यारी।
भा गयी मन को प्यारी।
कानन कुसुम सुमन जैसे
हर मन को भाता।
रचना जोड़ा नाता
टिका है आज तक।।
चले सांसों से आगे।
अपने विश्वास से आगे।
जागे जागे दिवा रजनी
पूनम की रात तक।
रचना जोड़ा नाता
टिका है आज तक।।

लेखक - गिरिजा नन्द मिश्र
पूर्णिया बिहार
3 मार्च 2016

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