यादें जो मेरी अपनी हैं..सुनीता जैन

2:49:00 AM


जुड़-जुड़ कर जो बनी धरोहर
यादों को कौन खरीद सका
रिश्ते चाहें छूटे हों अधपर
यादों का बाज़ार न बन ही सका

न धन -दौलत न संग अपनों का
यादों का वैभव संग चलता
मुट्ठी से फिसल रहे हों अपने
यादों का पुंज मन में बसता

न अल्प होतीं न ही समाप्त
जीवन में रच-बस जाती हैं
 उम्र के यौवन पे चढ़के
 नित नूतन सजती जातीं हैं

मन-संताप करातीं कुछ
कुछ मीठी छुअन हिलातीं हैं
गंगा की लहरों सी प्रतिदिन
उठती औऱ समातीं हैं

 तितली सी मन में वो उड़तीं
नित तारे गिनती रहती हैं
 कभी चाँद चाह की ज़िद करतीं
चाँदनी से शिकायत करतीं हैं

चिड़िया सी चहक-चहक जातीं
औऱ कभी बुलातीं कोयल सी
मकरंद सी गुन-गुन कर बोलें
 औऱ कभी टहलतीं सारस सी

 दीपक सी जलती हैं अंत तक
 कोई हवा न उसे बुझा पाई
  मन चाहे जिसको बाँटूं कभी
  अद्वितीय पूंजी है मेरी.....
यादें  जो मेरी अपनी हैं.......
                    Sunita jain..
                     

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