बूंद-बूंद तरसता किसान
2:07:00 AM-------------------------------
सुनीता जैन..(Editor)
चंद्रा टाइम्स.
किसान की आँखों से
टपकता खारा पानी भी
नहीं बुझा सका
धरती की प्यास......
बूंद-बूंद को तरसती
खारे पानी से शनैः शनैः
मूँह बाए बंजर दरारें
झेलतीं किसानों का संताप
दूध-मुँहे बच्चे की भूख/
बेटी की बढ़ती उम्र का दुःख/
बीमार माँ को इलाज का अभाव/
फटी साड़ी में टांका लगाती पत्नी
किसान को विमुख कर देता.......
धरती के फैले हाथ धीरज धराते
याद दिलाते हरियाली आनंद
छूटती हथेलियों की पकड़ से
पलटकर करता याचना
करता मजबूर पलायन.....
तोड़ने कोई पत्थर/
कोई क्षुधा मिटाने को तत्पर/
कोई बूंद को तरसकर/
बंट गई ज़िन्दगी अक्सर.......
हर ओर खनकती सियासती हँसी में
गुम होता उनका आत्मसमर्पण....
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