हैवानियत भरी दर्दनाक घटना

11:49:00 PM

ज़िन्दगी में बहुत बार ऐसा होता है कि जब किसी हैवानियत भरी दर्दनाक घटना से या स्तब्ध कर देने वाले किसी वाक़ये से हमारा सामना होता है और तब हमें लगता है कि इंसानियत मर गयी है शायद! पर तभी ठीक उसी वक्त संसार में कुछ ऐसा भी घटित हो रहा होता है कि हमारा टूटता दरकता विश्वास फिर से सम्भलकर लगता है जीवित हो उठता है! इंसानियत का अर्थ है निस्वार्थ भाव से किसी के भी प्रति दया, सेवा,प्रेम की भावना रखना! सही अर्थ में मानव सेवा ही ईश्वरीय कार्य है,इंसानियत है। इसी से संसार चल रहा है! नानक,राम,रहीम,बुद्ध, महावीर या यीशु- सभी ने सुखी संसार के लिए, सुखी जीवन के लिए इंसानियत का धर्म ही सर्वोपरि बताया!हमारे देश को शान्ति और अहिंसा के लिए विशेष रूप से जाना जाता है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में बलात्कार, भ्रष्टाचार, शोषण,सरेआम हत्याएं, सामाजिक बुराइयां,आतंकवाद और    प्राकृतिक आपदाएं अपने विकराल रूप में सामने आई हैं जिसने हमें भीतर तक हिला कर रख दिया है और न केवल इंसानियत पर बल्कि ईश्वरीय सत्ता पर से भी हमारा भरोसा डगमगा सा दिया है! गाँधी बुद्ध महावीर के देश में हैवानियत का ऐसा तांडव किसी का भी दिल दहला सकता है!
तब कवि का मन कुछ यूं कह उठता है...
न जाने कैसे
इंसानियत जम गयी है
पत्थर की मानिंद तोड़ो तो
क़तरा भी काम का न निकले
 सुनते थे
दृष्टि के कण-कण में
जान होती है
बेजान हो गयी
इंसानियत का
अब इस जहाँ में
इसलिए कोई
ठौर नहीं शायद...

पर ये सिर्फ कुछ वाकये भर होते हैं ! सभी इंसान इन गतिविधियों में लिप्त नहीं होते हैं । हमारे आसपास ध्यान से देखें तो भरपूर जीवन है,प्रेम और दया है! कुछ समय पूर्व की ही घटनाओं का ज़िक्र कर रही हूं। 4 साल का एक बच्चा प्रिंस- 60 फीट गहरे गड्ढे में गिर गया था! उसका परिवार ही नहीं पहले सारा गाँव फिर देश उसकी सलामती के लिए दुआ कर रहा था। हर तरह की मदद की जा रही थी और सेना के जवानों ने अपनी जान पर खेलकर उसे बचाया था। ये एक उदाहरण नहीं है । इस तरह की घटनाओं में  बहुत बार बच्चे को बचाया जा सका तो कभी-कभी असफल भी हुए पर प्रयासों की कमी कभी नहीं रही । ये ही नहीं इस तरफ भी कार्यवाही हुई कि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो! देश में कहीं भी प्राकृतिक आपदा हों सेना के जवान जान जोखिम में डालकर लोगों को सुरक्षित स्थान पर ले जाते हैं । चाहे वो केदारनाथ हो या गुजरात हो या चैन्नई हो या सबरीमाला हो....स्थानीय लोगों और प्रशासन की मदद मिलती है वो अलग! सेना के जवान ही क्यों आम जनता के भी ऐसे बहुत से उदाहरण हैं जब इंसानियत के ज़िंदा होने की पुष्टि हुई है।आपको याद है पुणे की वो बस दुर्घटना जिसमें दो छात्र बस के नीचे दबे रह गये थे! तब उधर से गुज़रने वाले पचासों लोगों ने बस को एक तरफ से ऊँचा उठाकर उन दोनों को निकाला! गम्भीर बीमारी से जूझ रहे 10 साल के एक बच्चे के युवावस्था तक जीवित रहने की संभावना न के बराबर थी । उसका सपना था पुलिस इंस्पेक्टर बनना! तब तत्कालीन पुलिस कमिश्नर (हैदराबाद ) ने उसे एक दिन के लिए पुलिस इंस्पेक्टर बनाकर इंसानियत की मिसाल पेश की!
एक रेडलाइट एरिए की बेटी का सपना था ड्रमर बनने का! उसने जब इस सपने को इंटरनेट पर शेयर किया तो लोगों ने crowd funding के ज़रूर राशि इकट्ठा की और उसे अमेरिका भी भेजा जहाँ उसने अपने सपने को सच किया,जिया!
पेशे से पहले इंजीनियर फिर टैक्सी ड्राइवर बने एक शख्स की कहानी सुनकर आप हैरान रह जाएंगे। एक बार उनकी पत्नी को गम्भीर अवस्था में अस्पताल ले जाने के लिए कोई टैक्सी नहीं मिली और बाद में उन्हें बचाया न जा सका! कोई और इस दुख का सामना न करे इसलिए वो खुद टैक्सी चलाने लगे और उनकी टैक्सी पर लिखा है उनका फोन न०और संदेश कि किसी भी आपातकालीन अवस्था में उन्हें बुलाएं । उन्होंने अनगिनत लोगों के प्राण बचाए हैं ।
आ‌ॅकलैंड निवासी हरनंदन सिंह ने सड़क दुर्घटना में घायल एक अजनबी बालक की चोट पर अपनी पगड़ी खोलकर बाँधी और उसकी जान बचाई! वो पगड़ी जिसको  ऊँचा रखने के लिए कोई भी सिख जान की बाज़ी लगा देता है!
दामिनी जैसी घटनाएं इंसानियत को शर्मिन्दा ज़रूर करती हैं पर बाद में न्याय के लिए उठे हाथ उस शर्म को धो पौंछ भी देते हैं ।
ये तो वो खबरें हैं जो हम सबने टीवी और अखबारों में देखी सुनी हैं । कुछ मेरे व्यक्तिगत अनुभव हैं जिनकी वजह से मुझे हमेशा लगता रहा कि इंसानियत ज़िंदा है!
मेरी मौसी हैं जोकि डाॅक्टर हैं और दिल्ली में रहती हैं । उनकी बिटिया जब 5-6 माह की थी तब उनके घर में एक बिहारी लड़का उमेश,घरेलू काम पर आया। एकदम अंगूठा छाप! हिन्दी भी मुश्किल से समझता था। तब मौसी का बेटा प्री-प्रायमरी में पढ़ता था। बच्चों की दादी को उमरा का अनपढ़ होना और हिन्दी न जानना बिल्कुल न भाता था। उन्होने दोपहर में पोते की किताबों से उमेश जिसे सब अब रामू कहते थे को पढ़ाना शुरू किया । पहले तो रामू को अच्छा नहीं लगा पर धीरे-धीरे उसने सब सीख लिया। घर भर की मैग़ज़ीन्स पढ़ डालता है और बहुत होशियार है। आज 30 साल हुए वो उस घर का सदस्य है और बच्चों का रामू अंकल बन गया है। इसमें एक ओर उस परिवार की इंसानियत है तो दूसरी ओर रामू की भी है जिसने उस परिवार का साथ फिर कभी नहीं छोड़ा!
एक और उदाहरण मेरे घर का है। मेरी बड़ी दीदी की शादी थी। अलवर से जयपुर भैया और कुछ रिश्तेदार "टीका" लेकर गये। शादी हालांकि साधारण ही हो रही थी फिर भी टीके में 21-51 हजार की कुछ रकम रखी गयी तो जियाजी के पिताजी ने वो रकम भैया के हाथ में वापस रखते हुए कहा "दो बहनें और हैं आगे! रखो बहुत काम आएंगे!"
अब क्या कहें इसे? इंसानियत ही न! बहुत से ऐसे उदाहरण हैं पर सबका यहाँ  ज़िक्र करना संभव नहीं है!

मैं खुद कई सारे ऐसे अभियान चला चुकी हूं जिनमें मेरा साथ बहुत से लोगों ने दिया और अपने भीतर की इंसानियत का परिचय दिया। दिवाली के दिनों में जब हम अपनी काम वाली बाईयों से बहुत अधिक मदद लेते हैं तब उनके अपने घर और बच्चों के लिए उनके पास समय नहीं बचता है। कभी कपड़े नहीं धुले कभी  समय से खाना न बना आदि! तब एक दिन मैने बाई को बोला कि कपड़े मेरी fully automatic washing machine में धोकर लेजा। जितनी देर में उसने घर का काम किया कपड़े धुलकर तैयार थे। फिर मैने उसके साथ कुछ परांठे और सूखी सब्जी बच्चों के लिए भेजनी शुरु की । यकीन मानिए मेरे साथ बहुत सी महिलाएं जुड़ गयीं । सबने अपनी बाईयों की इंसानियत के नाते मदद की! काम का पैसा तो हर कोई दे रहा था पर जिन्होंने इस तरह मदद की वो अब सालों साल दोहराई जा रही है।

हमने यानि मेरे साथ जुड़ी कुछ महिलाओं ने आजतक कपड़ों के बदले बरतन जैसा कोई स वदा नहीं किया है। हम ऐसे कपड़े ज़रूरतमंदों को बांट देते हैं जैसे कहीं काम करते मजदूरों को,घर की बाईयों को,स्कूल की बाईयों को,प्याऊ चलाने वालों को या रेहड़ी चलाकर सामान बेचने वाले को या कबाड़ी वाले को भी दे देते हैं।
अब कुछ सितारों की यानि सेलिब्रिटिज़ की बात करें तो बहुत से ऐसे लोग हैं जिन्होंने अनाथ बच्चों को गोद लेकर मिसाल कायम की है। ब्रैड पिट और एंजलिना बेसब्र तक पाँच बच्चों को गोद लिया हुआ है । सुष्मिता सेन,रवीना टंडन,मिथुन चक्रवर्ती, सुभाष घई,दिवाकर बैनर्जी, निखिल आडवानी,कुणाल कोहली,सलीम खान,संदीप सोपारकर आदि के नाम उल्लेखनीय हैं । इनमें से कुछ ने तो लम्बी कानूनी लड़ाई भी लड़ाई है इसके लिए! जब भी कोई जुर्म और जुल्म सामने आता है तो एक पल को लगता ज़रूर है कि इंसानियत है कि नहीं? पर अगले पल उस जुर्म और जुल्म के विरूद्ध खड़े लागों के समूह से समझ अता है कि दरअसल इंसानियत खत्म नहीं हुई थी वो इंसान खत्म हुआ था उसकी जगह किसी दरिन्दे ने ले ली थी। इंसानियत तो मदद के लिए उठे हाथों में ज़िंदा रहती है,हमेशा! !
ये सिर्फ कुछ उदाहरण नहीं हैं, जीवन की सच्चाई हैं । एक ओर जहाँ बुराई है संसार में तो दूसरी ओर अच्छाई और इंसानियत भी मौज़ूद है और उसी के बल पर दुनिया में गति है,सुन्दरता है,जीवन है,प्रेम है....


बस ये वक्त का फेर है
फिर ना कोई अंधेर है
इंसानियत जी उठती है
बस एक पहल की देर है

लेखिका -शिवानी शर्मा  

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1 comments

  1. बहुत बहुत शुक्रिया सुनीता जी

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