लेकिन कभी हारी नमानी - सरोज दुबे
4:15:00 AM
हारी न मानी
में टे गये कुचले गये
लेकिन कभी हारी न मानी
खून के आंसू लिखी
आजाद भारत की कहनी।
मारे गये काटे गये
खूनों की खोज लीं होलियां
किन्तु प्राणों पर सदा थीं
माता की जय बोलियां
आंधी तूफानों के आगे
तूफानों के तूफान थे
शीश पर गुलामीं कलंकी
आजादी के अरमान थे
शत्रुओं को घेर कर
निज मांद सेढूंढा और मारा
उनसे हम कुछ ऐसे निपटे
चकित था संसार सारा।
पत्थरों को पानी बना दें
हम बड़े हैं स्वाभिमानी।
खून के आंसू..
विद्रोह था आक्रोश था
तेवर कंटीले हो गये
बौरा गये पगला गए
जहरों जहरीले हो गये
दुश्मनों कोकापकर निज माटी में काटा और बोया।
मरते गिरतेभी नहीं
हमने कभी स्वाभिमान खोया
मोर्चे पर तिल तिल कटे कि
रक्त बीजीहो गये
माथे मांटी को लगाकर
नींद गहरी सो गये।
सौगंध हैतुम याद रखना
रक्त में भीगी जवानी।
खून ...
गुलामी से जो बचना चाहो
पल के योद्धा बन लड़ो
बलिदानियों की अमर गाथा
शीश धारे तुम पढ़ो।
सैकड़ों वर्षों लड़े करोड़ों
हारें हारीं रात दिन
सकटों केसमय में चोट
पर चोट खाई रात दिन
दास वो होते नहीं
जिन्हें कसकती चोटें पुरानी
जय हिंद।
सरोज दुबे।
लेकिन कभी हारी नमानी
में टे गये कुचले गये
लेकिन कभी हारी न मानी
खून के आंसू लिखी
आजाद भारत की कहनी।
मारे गये काटे गये
खूनों की खोज लीं होलियां
किन्तु प्राणों पर सदा थीं
माता की जय बोलियां
आंधी तूफानों के आगे
तूफानों के तूफान थे
शीश पर गुलामीं कलंकी
आजादी के अरमान थे
शत्रुओं को घेर कर
निज मांद सेढूंढा और मारा
उनसे हम कुछ ऐसे निपटे
चकित था संसार सारा।
पत्थरों को पानी बना दें
हम बड़े हैं स्वाभिमानी।
खून के आंसू..
विद्रोह था आक्रोश था
तेवर कंटीले हो गये
बौरा गये पगला गए
जहरों जहरीले हो गये
दुश्मनों कोकापकर निज माटी में काटा और बोया।
मरते गिरतेभी नहीं
हमने कभी स्वाभिमान खोया
मोर्चे पर तिल तिल कटे कि
रक्त बीजीहो गये
माथे मांटी को लगाकर
नींद गहरी सो गये।
सौगंध हैतुम याद रखना
रक्त में भीगी जवानी।
खून ...
गुलामी से जो बचना चाहो
पल के योद्धा बन लड़ो
बलिदानियों की अमर गाथा
शीश धारे तुम पढ़ो।
सैकड़ों वर्षों लड़े करोड़ों
हारें हारीं रात दिन
सकटों केसमय में चोट
पर चोट खाई रात दिन
दास वो होते नहीं
जिन्हें कसकती चोटें पुरानी
जय हिंद।
सरोज दुबे।
लेकिन कभी हारी नमानी
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