......मजदूरी या मजबूरी...........

7:26:00 AM


हर वर्ष माँ बनती,
दुबली, काली काया
एक धोती फा़ड़कर दो बनाती, सहर्ष।

आधी निचुड़ी छाती की ओट बनतीं,
बाँधती बाक़ी पेड़ की डाल पर।
खिलखिलाता,सोता,, झूले लेता
 दुबक कर माँ को देख लेता........

  मालिक कोें तलाशतीं चोर निगाहें,
  ममता लपकती ,लुटाती वात्सल्य
  पसीने की गंध से प्रफुल्लित दोनों,
  हड़कता पीठ पर एक डंडा.......
अचकचा कर छोड़ती रोता, बिलखता

दिन-ढले लेना है कुछ नून,तेल, लकड़ी
थकान मिटाने को खरीदनी है लाल परी
 घरवाला जलाएगा जिग़र,
  वो मिटाएगी उदर की आग.
    मासूम को स्तनपान करानाहै
     तक़दीर की मजदूरी है,
     करते जाना है।
                    सुनीता जैन..
                  E ....chandra times,
                            Sandesh.

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