भारत माता की जय तो तब बोलें.......@ShivChandra

7:21:00 AM


| Shiv Chandra |
आजकल 'भारत माता की जयÓ बोलने का बहुत रिवाज हो गया है। वैसे ही जैसे पंडित लोग 'तथास्तुÓ या 'ओम शांति-शांतिÓ बोलते है, अथवा पादरी लोग 'आमीनÓ बोलते हैं तो यह एक नारा है, या एक मंत्र हैक्या, कि 'जयÓ बोलने के बाद सब कुछ अपने आप हो जायेगा? आपको कुछ करने धरने की जरूरत नहीं पड़ेगी? ट्यूबवेल से पानी का झरना फूट पड़ेगा, बागों में फलों फूलों में बहारें होंगी, आमों की मिठास बढ़ेगी? बेटे, पोते जरूर पैदा होंगे। बच्चों को नौकरी मिल जायेगी, परिवारों में ईष्र्या, मनमुटाव, कलह नहीं होंगी, संतोषधन अपने आप मिल जाएगा? बहुएं सुशील व सदाचारी होंगी, बेटे धर्मपरायण व मेहनती होंगे? नक्सल  समस्या सुलझ जायेगी, हमारी भाषा मीठी और गालीविहीन हो जाएगी, दुर्घटनाएं नहीं होंगी, अलनीनो का असर बरसात को नहीं रोकेगा? इत्यादि।
यदि भारत माता एक स्नेहसिक्त, कल्याणी  माता का रूप धर लेती, तो किन बातों को देखकर उदास होती, खुद ही सोचिये। और फिर लग जाइये उसकी उदासी दूर करने में। राशम की अफरा-तफरी, अमीरों का अपने को गरीबी रेखा में जोडऩे की जद्दोजहद, बिजली का जब तब चले जाना, सूखती या गंदली होती नदी, धुएं से धूमिल आकाश, प्यासे पशु जिन्हें आदमी के पीने के पानी में मुंह मारने पर डंडे की मार खानी पड़ती है, शिक्षकविहीन स्कूल, गर्मी में ठेला खींचने को मजबूर स्त्री, आदि।
भारत माता रोती यह देखकर कि बहुत से लोग चमकती गाडिय़ों में ठंडक को बरकरार रखते हुए सड़कों पर भागे जा रहे हैं, जबकि बहुत से अन्य, उसी सड़क पर खड़े कुछ बेच रहे हैं। रूमाल, फूल, फल, अगरबत्ती, नारियल और यहां तक कि कारों की खिड़कियों पर चिपकने वाले जाली के पर्दे ताकि उसमें सवार लोगों को सूर्य की किरणें सांवला न बना दें। भारत माता कहलाने वाली के भाग्य में मसूरी, शिमला या कश्मीर नहीं है। न ही वह दुबई जाकर व्यापार करने का स्वप्न पाल सकती है। अक्सर उसे अपने नाम पर आवास, रसोई गैस, राशन कार्ड बनवाने की धुन पड़ी रहती है। दो जून भरपेट भोजन, और अपने बच्चों को 'मानुषÓ बनाने की चिन्ता लगी रहती है। वही है कि बचपन से एक जहर-पीकर पड़े रहने के अभ्यास के कारण दर-दर की ठोकरें भी खाती चलती है। उसका नाम ट्रेनों, बसों व सड़कों पर भीड़ होती है और उसे खड़े रहने, बैठने या चलने की जगह भी बमुश्किल मिल पाती है; परन्तु निर्माणाधीन भवनों, मिलों व कारखानों में वही श्रमिक कहलाती है, वह लद्दाख की सड़कों पर भी डामर बिछाती है और लातूर की ट्रेन पर भी फ$कत पानी देखने की हसरत पालती है। वह अपने स्वास्थ्य सौन्दर्य, परिधान और नफासत में परिष्कार नहीं ला पाती तो क्या है- आपके लिए इन्हें जुटाती तो है- (उसी) के हाल पर भारत माता जार-जार रोती है।
वैसे भारत माता पर कोई आक्रमण हो रहा हो, कोई युद्ध होने वाला हो तभी तो उसकी 'जयÓ बोलने का अवसर आता है। फिर 'जयÓ  कोई बोलने वाली बात न होकर करने वाली बात है। जब हम मल्लाहों द्वारा खेई जाने वाली नौका पर सवार होते हैं, तब हम यात्रा शुरु होने के पहले जरूर बोलते हैं 'बोल गंगा मैया की जयÓ क्योंकि हमें पता नहीं होता कि आज मैया की धारा कितनी बलवती है, कहा बहाव तेज है, कहां भंवर पड़ रहा है, और उसके बरक्स हमारे मल्लाहों में कितना दम और सूझ-बूझ है। कहीं हमारी नाव में छेद तो नहीं है?
परन्तु भारत माता को लेकर ऐसा कोई पसोपेश नहीं है। जर्मन लेखक फ्रोज काफ्का कहते हैं कि जासूसी उपन्यास पढ़ें तो लगता है कि दुनिया में पग-पग पर कितना रहस्य, रोमांच व विस्मय भरा है। किन्तु सामान्य जीवन में तो कोई रहस्य नहीं होता है। सब कुछ स्पष्ट दिखाई देता है। तब फिर भारत माता की जय बोलना न बोलना तो हमारा ऐसा पसोपेश है जिसे अंग्रेजी मुहावरे में कहते हैं 'बीटिंग एबाउट द बुशÓ। यानी झाड़ी के अन्दर छुपे खतरनाक जीव पर प्रहार न करते हुए उसके बाहर लाठी से प्रहार करना। क्यों भाई अगर भारत माता पर आपको किसी दुश्मन के वार का अन्देशा है, तो मिलिट्री की वर्दी में आ जाओ न। फिर भरपूर प्रशिक्षण लेकर अपना काम बखूबी करना। जल, थल, आकाश के सशक्त कार्यवाहक बनना।
वैसे भारत माता की जय दैनिक जीवन के विभिन्न आयामों में भी संभव है। हरेक व्यति सुशील सभ्य व भद्र बनकर तन मन से महिलाओं का सम्मान कर, नेकनीयती, निष्कपट, निरालस्य और निराभिमानी होकर देश की प्रसन्नता का सूचकांक बढ़ा सकता है- जिसमें अभी हमारा आंकड़ा 157 देशों में 118वें पर नम्बर आ गया है।
जब द्वितीय विश्व युद्ध में हवाई गोले इंग्लैंड को ध्वस्त करने पर तुले थे तब भी एक माली अपने गुलाब के बगीचे को पानी देने में व्यस्त था। उसे अपने काम में इस कदर प्यार था और उसे वह पूर्ण ईमानदारी से कर रहा था। तब न ब्रिटिश लोग एक ऐसा साम्राज्य बना पाए कि जिसमें सूर्य कभी डूबता न था। कई काम बल्कि लगभग सभी काम जब रोज-रोज बिना नागा करने पड़ते हैं तब उबाऊ और नीरस लगते हैं। लेकिन प्रसन्नवदन रहकर उन्हें करते जाना ही 'भारत माता की जयÓ सुनिश्चित करना है। किन्तु भारत में अक्सर लोग इस बात को भूल जाते हैं। सरकारी अमले को ही देख लें। सरकारी दुकान का समय पर खुलना, ग्राहक के प्रश्नों का नम्रता व सहिष्णुता से पूर्ण उत्तर देना, सामान में अफरा-तफरी न करना, ये सब ही वे कृत्य हैं जिनमें 'भारत माता की जयÓ सुनिश्चित करना है जिनसे भारत माता की जय होगी। जब नौकरी नहीं होती तो व्यक्ति नियोजक के चरणों तक झुकता है, जब नौकरी मिल जाती है, तब वह शहंशाह बन जाता है। उसे ग्राहक मूर्ख लगते हैं। भारत माता की जय एक सरलतम विकल्प है चूंकि भारत माता एक चित्र है जिसमें वह आपसे कोई मांग नहीं करती। यदि आप उसे जीवंत समझते हैं तो उसकी दैनिक सेवा करनी होगी। असम की एक प्रोफेसर ने मुझे बताया कि पहले वहां कोई फल सब्जी नहीं उगते थे, लेकिन जबसे पड़ोस के श्रमशील लोगों ने आकर वहां मेहनत करनी शुरु की तबसे हरियाली छा गई। तो प्रेम से रोज करके दिखाइये। भारत माता की जय!

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